Thursday, January 8, 2009

वो अंग्रेज़ी वाले...

वो अंग्रेज़ी वाली है...इसे सिर्फ एक वाक्य मत समझिये...ये एक लाइन बहुत कुछ कहती है...अंग्रेज़ी वाले सातवें आसमान से उतरे हैं ज़मीं पर...वो ज़मीन से दो फुट ऊपर हैं...वो ज्ञान के देवता है...वो सबकुछ हैं...और इसी में जुड़ा होता है ये एक भाव...और तुम कुछ नहीं...मेरे आसपास भी अंग्रेज़ीवाले और वालियों के किस्से कहानियाँ रोज़ होते हैं...ताज्जुब करेंगे जानकर कि हिन्दी पत्रकारिता में जहाँ एक एक शब्द सीखते समझते अखबारों में चप्पलें रगड़ते टीवी चैनलों तक पहुंचते हैं लोग....वहाँ सिर्फ अंग्रेजी के चार लफ्ज़ों से कई नौकरी पा जाते हैं...मज़े की बात ये है कि अंग्रेज़ी भी ऐसी नहीं कि मौका पड़े तो एक खबर ही बना लें अंग्रेज़ी में...वही चार जुमले...जो महानगरों के बाज़ारों रेस्तराँओँ में कान में बगैर पूछे चले आते हैं...हिन्दी की पत्रकारिता करते हैं...लेकिन हिन्दी ना बोल पाते हैं...ना लिख पाते हैं...उस पर अंग्रेज़ी में इस बात का तुर्रा भी कि अजी हम हिन्दी नहीं जानते...हिन्दी अंग्रेज़ी का रोना बहुत सालों पुराना है...उसमें नहीं जाऊँगी...मेरी पीड़ा सिर्फ इतनी है कि हिन्दी का दम भरते...हिन्दी में जूझते सीखते मेरे जैसे तमाम लोग कब तक इस जुमले से दरकिनार होते रहेंगे....कि नहीं भई,बड़ा फर्क है...आखिर वो अंग्रेज़ी वाले हैं.......

6 comments:

"अर्श" said...

bahot khub kaha aapne...yatharth ko apne me liye hai ye lekh......

Unknown said...

sahi kaha aapne...difference to hai par ye sirf kuch jagah he dekhne ko milti hai...

मधुकर राजपूत said...

अंग्रेजीदां, हर किसी को शौक चर्राया है। इनमें से ज्यादातर बिचौलिए ही हैं, ऐसे कि जो न हिंदी ही लिख पाते हैं और न अंग्रेजी ही। इधर के न उधर के। बस अधकचरे ज्ञान से बदबू फैलाते जाना इनका मुख्य चरित्र है। गाल बजाने भर से काम चल जाता है इनका। जिंदगी भर झूठी शान के साथ शेखी बघारने वाले खुद भी जानते हैं कि वो अपने आप से झूठ बोलते आ रहे हैं। गुफा के चमगादड़ हैं ये। एक दिन अपनी ही गंदगी में दबकर मर जाना ही इनकी नियति है। छोड़िए, इतनी चिंता न कीजिए। बस साहस न डिगे। संघर्ष मंजिल तक ज़रूर पहुंचाएगा। आपकी लेखन शैली लुभावनी है।

kumar Dheeraj said...

बहुत खूब । आपने सच लिखा है । अंग्रेजी बोलने वाले लोगो का क्या कहना । हिन्दी बोलने वाले से कई फीट उनका कद बड़ा होता है । वे बुध्धिजीवी कहलाते है । उनकी वाणी से यह दिखता है कि वे कही और से पढ़कर आये है भले ही उन्हे इसकी समझ हो या न हो । उन्ह लगता है कि वे ज्यादा स्माटॆ है और अन्य की तुलना में ज्यादा पढ़े लिखे है । हकीकत मै भी अच्छी तरह से जानता है । बहुत अच्छा लेख । एक बार खलिहान की और भी झांके

नीरज श्रीवास्तव said...

शिफाली !
अपनी बोली तक में अभिव्यक्ति का माद्दा नहीं रखते कथित अंग्रेज़ी वाले... झूठ का लबादा ओढ़े रटे-रटाये अंग्रेज़ी के चंद जुमलों के सहारे ख़ूब चलती है मानसिक दिवालियापन की दुकान... अफ़सोस यही है कि रुह की गुलामी झेलते कद्रदान भी इन्हें ख़ूब मिलते हैं... इनसे कहिये ज़रा...
हम उनसे तो बेहतर हैं जो रुप बदल लेते हैं...
माना कि ख़राशें हैं, चेहरा तो हमारा है...!

राजीव करूणानिधि said...

सही कहा शिफाली आपने. विदेशी और रंग बिरंगी भाषा बोलने से अगर कोई विद्वान् हो जाता तो सारे स्लम एरिया के निवासी विद्वान कहलाते. आप चले जाइये राजस्थान और ऐसे सभी टूरिस्ट जगहों पर, आपको कई लोग विदेशी और अंग्रेज़ी बोलते नज़र आ जायेंगे. पर उन्ही लोगों को हिन्दी भी ठीक से नही बोलने आती है.