Wednesday, December 31, 2008








आज की रात 12 बजते ही
हमारी तरह
मोबाइल भी हो जायेगा पागल ....
बार बार बजेगा
मुबारकेंआयेंगी दूर दूर से इस ताकीद के साथ
कि बदल गया है साल,
कल फिर सुबह होगी
साल के 365 दिनों में
बदलता हुआ सिर्फ एक दिन हमें लगेगा खास
कुछ बदलाव भी होंगे
बदलेगा घर की दीवार पर लगा कैलेण्डर
तारीख महीने की कतार में
साल के खाने में होगा बदलाव
ज्योतिषी बारहखानें बाँचकर
फिर लिखेंगे नये साल का नया फलसफ़ा
पर जहाँ रुका है वक्त,रुका ही रहेगा...
फिर चाहे बदल गया हो साल
टूटे रिश्तों की दरार वक्त के साथ
हो जायेगी कुछ और गहरी
जो छूट गये वो छूटे ही रहेंगे इस साल भी
तारीखें भी भूले मेरे पिता
इस बार भी नहीं जान पायेंगे वक्त का रद्दोबदल
नया साल,नई उम्मीदें,नई सुबह,नया सूरज
मन का भरम है,सब
एक दिन बाद होगी
फिर वहीं पुरानी कहानी
फिर वही जूझती घिसटती दोपहर
रोती सिसकती रात......
चंद घँटो में खत्म हो जायेगी
नये बरस की नई शाम......
शिफाली

8 comments:

ss said...

बहुत बढ़िया|
फिर वहीं पुरानी कहानी
फिर वही जूझती घिसटती दोपहर
रोती सिसकती रात......
चंद घँटो में खत्म हो जायेगी
नये बरस की नई शाम...

आशा करते हैं इस बार different कुछ हो| नया साल मुबारक|

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महुवा said...

इन सबके बावजूद..
नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं...

विवेक said...

बहुत सुंदर...यही सच है...तारीख के अलावा कुछ बदले...तो कहें कि नया साल है...नहीं तो बस बाजार का बवाल है...

नीरज श्रीवास्तव said...

कितना सतही है सब-कुछ... शायद लोग नहीं जानते कि घड़ी के ठीक चलने का मतलब ये कभी नहीं होता कि वक्त भी ठीक चल रहा है... इसके बावजूद सिर्फ तारीख बदलने पर शुरु हो जाता है मुबारकों का सिलसिला... देखकर यकीन नहीं होता कि अगर इनकी ज़िंदगी में सचमुच खुशी आती होगी... तो किस तरह व्यक्त कर पाते होंगे...

पुरुषोत्तम कुमार said...

संजीदगी के साथ रखी गई आपकी बातें सोचने पर मजबूर करती है। ..लगता है, हां बात तो सच ही है। इतना शोर और सबकुछ जस का तस। हम सब प्रवाह में बहते से चले आते हैं। अच्छी रचना।

श्रुति अग्रवाल said...

सच साल सिर्फ कलेंडर पर बदलता है...08 की जगह 09 हो जाता है लेकिन माहौल है कि बदलता नहीं। देश उसी आतंकवाद के माहौल में सांस ले रहा है..हम उसी मंदी की मार में पिस रहे हैं...एक झोपड़ी में नन्हा फिर रोटी के एक टुकड़े के लिए इस नए साल में भी तरस रहा है।

राजीव करूणानिधि said...

sahi likha hai shifali ji aapne. 365 me sirf ek din hi khas honege, baki ''fir usi bewafaa pe marte hain, fir wahi zindagi hamari hai''

naye saal ki hardik badhai.

Anonymous said...

bahut badhia likha hai aapane

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