Tuesday, October 28, 2008

दिवाली की राम राम....
और एक प्रार्थना....
कि अबकि,
दिवाली बाहर निकल आये बाज़ार की कैद से
दिवाली की गुजरिया, धन्नासेठ के साथ,
गली के रामलाल के घर भी आये
मिठाई की दुकानों में बहक गई
अम्मा के हाथ बनी गुजिया की महक
फिर लौट आये अपनी रसोई में...
लाल पीली पन्नी की कंदील,
भाई के हाथ की सीरिज़,
आँगन में खड़ा मिट्टी का किला
बताओ तो भला कहाँ मिलेगा बाज़ार में,

साल में एक बार दिवाली पर ही मिलती
नये कपड़ों की सौगात,
वो लिपे हुए आँगन
रंगोली में रोशन होते मिट्टी के दिये
तश्तरी में मोहल्ले की सैर कर आते
अम्मा के पकवान,
पटाखों की साझा गूँज...
और मिलबाँट जलती फुलझड़ियाँ.....
बाज़ार में कहाँ मिलेगी
हमारी दिवाली....
....

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