बेटियों पर किसी मुशायरे में कुछ शेर सुने थे....दिल में उतरे शेर पहले अपनी डायरी में दर्ज किये और अब आपकी नज़्र हैं...........
उड़के इक रोज़ बहुत दूर चली जाती हैं।
बेटियाँ शाख पे चिड़ियों की तरह होती हैं।।
ऐसा लगता है कि जैसे खत्म मेला हो गया
उड़ गई आँगन से चिड़िया घर अकेला हो गया।।
रो रहे थे सब तो मैं भी फूटकर रोने लगा।
वरना मुझको बेटियों की रुखसती अच्छी लगी।।
ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन माँ को खुश रखना,
ये कपड़ों की मदद से अपनी लंबाई छुपाती है।।
घर में रहते हुए गैरों की तरह होती है।
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं।।