Tuesday, February 12, 2008

पाती, राज ठाकरे के नाम

राज ठाकरे नही चाहते की उत्तर भारतीय मुम्बई में रहें ...अब मिश्रा जी भी नही चाहते की बंगाल से आए मछली खाने वाले मित्रा बाबू से वो पडोसियाना निभाएं,लेकिन मनसा की तरह उनकी अपनी कोई सेना नही है और ना ही इतनी हैसियत की गाडी कमाई से मिश्राजी के पड़ोस मे लिए हुए मित्रा साहब के घर को वो दबिश से खाली करा सकें,जिस तरह की जोर जबरदस्ती मुम्बई मे रह रहे उत्तर भारतीयों के साथ हुई है...राज के मुम्बई पर राज करने के इस अंदाज़ के विस्तार मे जाइये महसूस करेंगे आप की इस बयान से अपने ही आसपास कितना कुछ दरकने लगा है...कोई उस बयान के हक मे है कोई खिलाफत में ,बीच की सोच रखने वाला सोच रहा है कल,गाँव और शहर का झगडा तो नही खड़ा हो जाएगा,..फिर बबुआ को पढ़ा लिखा कर बड़ी नौकरी करने कहाँ भेजूँगा,वो उत्तर भारतीय हो,देश की किसी दिशा से आया हो,वो इस पर गुस्साता है,जो कहता है आप भी सुनिये,माना जनाब मुम्बई आपकी है,उसकी भाषा आपकी,संस्कृति आपकी,पर सौतेले ही सही संतान हम भी हैं उस मुम्बा माँ की..जिसने आपको अगर अपने दुलार से हम पर गरियाने की इजाज़त दी है..तो हमे भी अपने आँचल मे फलने फूलने का हौसला दिया है,और हमने भी इस माँ से कभी दगा नही किया,मुम्बई बम ब्लास्ट से लेकर बाढ़ और रोज़ होने वाली तमाम मुसीबतों मे जब वक्त पड़ा तो हम भी उसके काम आयें हैं,माना हम उत्तर के हैं बरसों पहले अपना वतन छोड़कर मुम्बैया हो गए हम लोगो ने भी अपनी उमर का पसीना आपके शहर के नाम लिखा है,फिर भी जानते हैं हम की बेगाने हैं,लेकिन अब आप जवाब दीजिये,जुहू बीच के किनारे छट पूजा करने वाले हम लोग अपनी उन संतानों को क्या जवाब दें जो हमारी जड़ों को काट कर आपके रंग मे रंग गई हैं,आपकी बदसलूकी बर्दाश्त है हमें,लेकिन हम अपने उन बच्चों का क्या करें,जो भोजपुरी भूलकर मराठी बोलने लगे हैं,हम गंगा किनारे के बुडे माँ बाप पिछडे हैं जिनके लिए,पश्चिम के हो चले गंगा मैया के इन बच्चों की भी कोई शिनाख्त बता दें मुम्बई के राज ठाकरे साहब.