Friday, December 31, 2010

आज की रात 12 बजते ही
हमारी तरह
मोबाइल भी हो जायेगा पागल ....
बार बार बजेगा
मुबारकेंआयेंगी दूर दूर से इस ताकीद के साथ
कि बदल गया है साल,
कल फिर सुबह होगी
साल के 365 दिनों में
बदलता हुआ सिर्फ एक दिन हमें लगेगा खास
कुछ बदलाव भी होंगे
बदलेगा घर की दीवार पर लगा कैलेण्डर
तारीख महीने की कतार में
साल के खाने में होगा बदलाव
ज्योतिषी बारहखानें बाँचकर
फिर लिखेंगे नये साल का नया फलसफ़ा
पर जहाँ रुका है वक्त,रुका ही रहेगा...
फिर चाहे बदल गया हो साल
टूटे रिश्तों की दरार वक्त के साथ
हो जायेगी कुछ और गहरी
जो छूट गये वो छूटे ही रहेंगे इस साल भी
तारीखें भी भूले मेरे पिता
इस बार भी नहीं जान पायेंगे वक्त का रद्दोबदल
नया साल,नई उम्मीदें,नई सुबह,नया सूरज
मन का भरम है,सब
एक दिन बाद होगी
फिर वहीं पुरानी कहानी
फिर वही जूझती घिसटती दोपहर
रोती सिसकती रात......
चंद घँटो में खत्म हो जायेगी
नये बरस की नई शाम......
शिफाली