2009 के नौ तपे का
पहला ही दिन
झुलसा गया
वो जो बचाता
रहा हमें,
हवा ,पानी, और धूप से
या कि
देता रहा निरंतर
हवा,पानी और धुप
नौ तपे के
पहले ही दिन
धधकती आग मे
रख आए उसे .................
- अनिल गोयल
( जज़्बात के लिए ज़रूरी नही होते खून के नाते.....और हमेशा नाम से तय होने वाले रिश्तों के चेहरे ,वरना शमशान घाट से बहुत दूर ,मेरे पिता को करीब से भी ना जानने वाले हाथों से कैसे उतर आते ये दर्द भरे अशार....जिनसे लिखने की तमीज़ सीखी...आज उन्होंने फिर सबक दिया की पिता के बगैर मुसीबत से घबराते, हम बच्चों का दर्द सबकुछ नही....ताउम्र हमें हर झुलसते लम्हे से महफूज़ रखने वाले पिता,हमारे हर ताप पर ठंडे फाहे रखने वाले पिता....ज़िन्दगी भर संघर्षों मे जीने वाले पिता का कुदरत ने आखरी वक्त मे भी इम्तेहान ले लिया...)
Wednesday, September 16, 2009
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