Monday, July 27, 2009

अर्ज़ किया है.............,

ग़ालिब साहब का मशहूर शेर है,
इब्ने मरियम हुआ करे कोई,
मेरे दुख की दवा करे कोई,
जब तवक़्को ही उठ गई गालिब
क्यों किसी का गिला करे कोई........

ग़ालिब के मिसरे का दामन थामा....और मोबाइली मुशायरे में सुधीर ने कुछ शेर कह दिये....मुलाहिज़ा फरमाइये.....
जब ज़मीनों ने साथ छोड़ दिया..,
आसमानों का क्या करे कोई
रात भर इक सुबह को ढोता हूँ,
साथ मेरे उठा करे कोई,
काश होता कोई जो अपना भी...
हम जो बिखरें दुआ करे कोई.....

सुधीर