Wednesday, August 27, 2008

मिशन के जज़्बे के साथ,
पकड़ी थी कलम कभी.
पहले इस कलम की स्याही
बाज़ार के रंगो की
मिलावट से बदरंग हुई...,
फिर झोलाछाप लेखनी का उस्ताद
खरी खरी कहने वाला पत्रकार
कुछ खूबसूरत से चेहरों से
बदली हो गया,
एक माइक,
दो बाइट,
तीन वीओ के ढेर सारे पत्रकार
कई बार,
वो भी ज़रुरी नहीं,
बहस पुरानी है,
लेखक और पत्रकार में
फर्क है...,
पर अगर केवल सूचनाएँ
जुटाने वाला,
टीवी,अखबारों तक पहुँचाने वाला
पत्रकार है,
तो आम आदमी और खबरनवीस में फर्क किसलिये....,
खबरें गली के चौकीदार पर भी हैं..,
मोहल्ले के बदमाश पर भी..,
और समाज का भरोसा खो चुके नेता पर
भी हैं खबरें,
फर्क इतना है कि समाज के इन तबकों के पास
उस खबर को खबर बनाने की तमीज़ नहीं है..,

Wednesday, August 13, 2008

महीना भर,
हम जीते रहे किरदारों को
एक साथ कई कई किरदार
संग रोये,साथ हँसे
और बोये सपने अपने
अपने संवाद अच्छी तरह याद थे हमें,
पर्दा उठा नहीं कि समाँ जाते,
अपनी अपनी भूमिकाओं में
आत्मीय भूमिकाएँ
इतनी करीबी,इतनी अपनी
कि किरदार को अलग करना मुश्किल
फिर गिर गया पर्दा,
नाटक खत्म हुआ..
पोशाकों के साथ.
बदलने लगी भूमिकाएँ भी,
पर कुछ अदाकार
जो भूल ही नहीं पाये अपने संवाद,
जो निकल नहीं पाये अपने अपने किरदार से,
अब भी इस उम्मीद में हैं,
कि फिर खेला जायेगा नाटक,
फिर जीया जायेगा किरदारों को...
संग रोयेंगे,साथ हंसेंगे
और बोयेंगे सपने अपने.......
कविता बन पड़ी जानती नहीं...पर लंबे सफर पर निकले ये उन अपनों की बयानी है...जीवन की रस्सी पर पैर जमाते सब अलग अलग निकल गये...मैं उनमें से हूँ...जिन्हे ना वो किरदार भूला है....ना अपने संवाद.....।