Wednesday, July 23, 2008

सांसदों मे अटकी थी सरकार की साँसे,पल पल बदलता सियासत का पारा,और मुल्क टीवी पर दलबदलू,पलटू नेताओं, पर नज़रें जमाये था.....सरकार गिरी क्या...पूरे दिन हर जुबान पर यही एक जुमला.....पर इस मुल्क मे एक मुल्क और भी था... सरकार से बेपरवाह मुल्क,वो मुल्क जिसके पेट का सवाल किसी सरकार से हल नही होता ,ऐसा नही की सियासत से इसका कोई वास्ता ही नही,नेताओं की सभाओं मे भीड़ बनकर ये भी जाता है....लेकिन कार्यकर्ताओं की फेंकी हुई झूठन खाने...ये वो मुल्क है जिसकी बढती आती खाली हथेली, कार मे इतराते अमीरों के कॉच चढवा देती है.... हर नेता चुनाव मे इस मुल्क की परवाह करता है...लेकिन चुनाव बाद ये मुल्क भाषणों के साथ नेताओँ के दिमाग से भी उतर जाता है....ताज्जुब होता है लोकतंत्र में ये ही वो मुल्क है जो सूरज की पहली किरन के साथ वोट देने जाता है,...और सरकार बनाता है।

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